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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2679
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी तृतीय प्रश्नपत्र - प्राचीन एवं मध्यकालीन काव्य

प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर विचार कीजिए।

उत्तर -

प्रायः कवि अपनी कल्पना शक्ति व कवित्व के बल पर ही काव्य जगत में प्रसिद्धि पाता है। परन्तु बिहारी ने इन गुणों के साथ-साथ अपनी बहुज्ञता के बल पर भी प्रसिद्धि प्राप्त की है। उनकी प्रसिद्धि का मूल आधार उनकी एकमात्र कृति 'बिहारी सतसई है जिसमें 700 से अधिक दोहे संकलित हैं। परन्तु इनमें से 600 दोहे केवल शृंगार वर्णन पर आधारित है तथा शेष दोहों में से अधिकांश दोहे भक्ति तथा नीति आदि से सम्बन्धित है। सम्पूर्ण सतसई में कवि ने विभिन्न विषयों को आधार बनाकर दोहों की रचना की है। फलतः बिहारी के दोहों में नीति, प्रकृति, समाज, संस्कृति, राजनीति, सौन्दर्य आदि के अनेक बिम्ब विद्यमान हैं। उनके दोहों में आयुर्वेद, ज्योतिष, गणित, राजनीति, मनोविज्ञान, युद्ध, काम, संगीत आदि विषयों का ज्ञान देखा जा सकता है। इन विविध विषयों के उद्भास के कारण यह स्वीकार किया जाता है कि बिहारी बहुज्ञ थे। निम्नलिखित विषयों के आधार पर उनको बहुज्ञता सिद्ध की जा सकती है -

1. आयुर्वेद ज्ञान - बिहारी की बहुज्ञता को सिद्ध करने वाले कुछ आलोचक यह सिद्ध करने का प्रयास करते हैं कि उनको आयुर्वेदशास्त्र का समुचित ज्ञान था। लेकिन अन्य विद्वान इस दृष्टिकोण से सहमत नहीं है। उनका कहना है कि आयुर्वेदशास्त्र के पाँच शब्दों के प्रयोग से बिहारी को आयुर्वेदज्ञ नहीं कहा जा सकता। फिर भी निम्नलिखित दोहा यह सिद्ध करता है कि कवि को आयुर्वेद का कुछ ज्ञान अवश्य था

मैं लखि नारी ज्ञान करि सख्यौ निरधारु यहैं।
वह ई रोग निदानु, वह वैद्य औषधि वहै॥

2. गणितशास्त्र का ज्ञान - इसी प्रकार से कुछ दोहों के आधार पर बिहारी को गणितज्ञ की गौरवपूर्ण पदवी से भी विभूषित किया गया है। निम्नलिखित दोहों में गणित शास्त्र सम्बन्धी कुछ ज्ञान दिया गया है। लेकिन यह ज्ञान ऐसा नहीं है जिसके आधार पर उनको गणितज्ञ कहा जा सके।

कहत सबै, बैंदी दियें, आँकु दस गुनौ होतु।
तिय लिलार बैंदी दियें, अगिनितु बढ़त उदोतु।
कुटिल अलक छुटि परत मुख, बढ़िगौ हतौ उदोतु।
बंक बिहारी देत ज्यौं दाम खपैया होतु॥

3. ज्योतिषशास्त्र का ज्ञान - बिहारी ने अपने काव्य में ज्योतिष विषयक दोहों की रचना की है। अपनी अनुभूतियों को सफलतापूर्वक अभिव्यक्त करने के लिए उन्होंने ज्योतिष के अनेक जटिल सिद्धान्तों को परखा एवं समझा है। उदाहरण के लिए निम्न दोहे में वे ज्योतिषशास्त्र के उस सिद्धान्त के ज्ञान को दर्शाते हैं जिसके अनुसार, यदि बालक का जन्म तुला, धनु या मीन लग्न में हो और शनिग्रह भी उस समय जन्म राशि में हो तो वह बालक राजा बनता है -

सनि कज्जल, चख सख लगन उपज्यौ सुदिन सनेहु।
क्यों न नृपति हवै भोगवै, हहि सुदेसु सबु देहु॥

इसी प्रकार उन्होंने ज्योतिषशास्त्र से सम्बन्धित पत्रा, तिथि, जारज योग आदि विषयों को आधार बनाकर भी अनेक दोहों की रचना की है जिससे पता चलता है कि उन्हें ज्योतिषशास्त्र का अच्छा ज्ञान था।

यथा -

चित पितु मारक जोग गनि, भयो भनेँ सुत सोगु।
फिर हुलस्यौ जिय जोइसी, समुझे जारज जोगु॥

4. दर्शनशास्त्र का ज्ञान - सतसई के कुछ दोहों से कुछ विद्वानों ने यह अनुमान लगाया है कि बिहारी को दर्शनशास्त्र का भी अच्छा ज्ञान था। उन्होंने यत्र-तत्र दार्शनिक सिद्धान्तों पर भी समुचित प्रकाश डाला है। अद्वैतवादियों की 'जगत् मिथ्या' मान्यता, योग, ब्रह्मतत्व की सर्वव्याकता, रहस्यवाद आदि विषयों पर कवि ने प्रकाश डाला है। यूँ तो हिन्दी के सभी महान् कवि दार्शनिक एवं विचारक थे। अतः बिहारी ने भी इसी दिशा में प्रयास किया है। एक उदाहरण देखिए -

बुधि अनुमान, प्रकारन श्रुति किये ठहराई।
सूक्ष्म कटि पर ब्रह्म की अलख लखी नहीं जाई।

5. राजनीति का ज्ञान - बिहारी मिर्जा राजा जयसिंह के दरबारी कवि थे। उस समय हमारे देश में अनेक प्रकार की राजनीतिक गतिविधियाँ सक्रिय थीं। राजदरबार में उपस्थित रहने के कारण बिहारी इन गतिविधियों से बेखबर कैसे रह सकते थे। कवि ने अपने कुछ दोहों में स्वामी, अमात्य, कोष, दुर्ग, सन्धि विग्रह, दान तथा आसन आदि की चर्चा की है।

उदाहरण के लिए निम्नलिखित दोहे में कवि ने युद्ध क्षेत्र में सेना के संचालन को आधार बनाकर नायक-नायिका के मिलन का वर्णन किया है-

जुरे दुहन के दृग झमकि, रुके न सीने चीर।
हलुकी फौज हरौल ज्यों, परे गोल पर भीर॥

6. पौराणिक एवं ऐतिहासिक ज्ञान - प्रायः प्रत्येक हिन्दी कवि को रामायण और महाभारत का समुचित ज्ञान होता है। बिहारी भी इस ज्ञान से किस प्रकार वंचित रह सकते थे। उन्होंने महाभारत के अनेक प्रसंगों की चर्चा अपने दोहों में की है। उन्होंने दुर्योधन की जलमग्न विद्या, दुर्योधन का वरदान प्राप्त करना, अश्वत्थामा का प्रसंग, द्रौपदी का चीर हरण आदि की चर्चा की है। इसी प्रकार रामायण से जटायु का उद्धार, हनुमान का सागर पार करना, सीता की अग्नि परीक्षा आदि कथांश की उन्होंने चर्चा की है। पुनः मदन दहन, वामनावतार, गजग्राह आदि के प्रसंग भी उनकी लेखनी से बच नहीं पाये। द्रौपदी के चीरहरण प्रसंग से संबंधित एक दोहा देखिए -

रह्यो ऍचि अन्त न रहै, अवधि दुसासन वीर।
आली बाढ़त विरह ज्यौ पांचाली के चीर॥

7. लोक ज्ञान - वस्तुतः बिहारी की सफलता उनकी बहुज्ञता के कारण नहीं, अपितु उनके लोकानुभाव और लोकजीवन का ज्ञान है। उन्होंने अपने युग के लोक जीवन को बड़ी सूक्ष्म दृष्टि से देखा और परखा। भले उस युग में यातायात के साधन सीमित थे, लेकिन बिहारी की लोक पर्यवेक्षण की सीमाएँ सीमित होकर भी गहन थीं। यही कारण है कि कवि ने अपने लोकानुभाव के आधार पर तत्कालीन समाज, राजनीतिक तथा धार्मिक परिस्थितियों को पूर्ण कुशलता के साथ चित्रित किया है। सामाजिक परिस्थितियों के अन्तर्गत कवि ने तत्कालीन समाज में व्याप्त अन्धविश्वासों एवं कुरीतियों का चित्रण किया है। साथ ही उन्होंने उस युग के पर्वों, त्योहारों यथा होली, तीज, दशहरा, गणेश पूजा, संक्रान्ति आदि का सजीव वर्णन किया है। इसी प्रकार से मुगल बादशाहों के परस्पर संघर्षों तथा दुहरे शासन के अत्याचारों से संत्रस्त जनता की असहायावस्था का भी वर्णन किया है। अन्यत्र कवि ने वास्तुकला, तन्त्रशास्त्र, कृषि, चौगान, नृत्य, पतंगबाजी तथा शिकार आदि का भी वर्णन किया है।

एक-दो उदाहरण देखिए -

कनक कनक तै सौगुनी, मादकता अधिकाइ।
उहि खाएँ बौराइ जग, इहिं पाएँ ही बौराइ॥
नर की अरु नल-नील की गति एकै करि जोइ।
जेतो नीची हवै चलै ते तो ऊँचौ होइ॥

वास्तव में पद्मसिंह शर्मा जैसे विद्वानों की कृपा से ही बिहारी के व्यापक पाण्डित्य की चर्चा चल निकली। पुरानी लकीर का फकीर बनकर विद्वान् यह स्वीकार करते चले गए कि बिहारी का लोकानुभव न केवल व्यापक था अपितु उनकी बहुज्ञता भी अप्रतिम थी। लेकिन नवीन दृष्टि से बिहारी का मूल्यांकन करने वाले विद्वानों में डॉ. बच्चन सिंह ने इस मत की कटु आलोचना की है। वे लिखते हैं -

"बिहारी के कुछ दोहों के आधार पर उन्हें चोटी का गणितज्ञ, वैद्य था ज्योतिषी मान लेना अर्थ का अनर्थ कर बैठना है। यह बात अब इतनी घिस पिट गई है कि उसका उल्लेख भी बासीपन की गंध से खाली नहीं है।' लेकिन बिहारी के प्रशंसकों ने उनकी बहुज्ञता को सिद्ध करने की पूरी कोशिश की है। फिर भी बिहारी काव्य के अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि उनका बिहार, स्थल अत्यधिक व्यापक है। वे भले ही सर्वशास्त्रवेत्ता न हों लेकिन इतना तो निश्चित है कि उनकी विशेष ज्ञान की किरणें सर्वत्र प्रकाशमान होकर पाठक को भी चमत्कृत करती हैं। बिहारी के काव्य को पढ़ने से हमें ज्योतिष, वैद्यक, विज्ञान एवं गणित, दर्शनशास्त्र, पुराण, राजनीति तथा लोक जीवन के विभिन्न पहलुओं का ज्ञान प्राप्त हो जाता है। उनके दोहों की सफलता और लोकप्रियता का मूल कारण उनकी बहुज्ञता भले ही न हो, लेकिन उनकी पर्यवेक्षण शक्ति की हमें भूरि-भूरि प्रशंसा करनी पड़ती है। एक विद्वान आलोचक के शब्दों में- "जन-जीवन से अनेक प्रचलित बातों को उठाकर उन्होंने अपने काव्य में यथावसर गूँथ दिया है। जो भी वस्तु उनकी दृष्टि में आईं जिस किसी का निरीक्षण उन्होंने किया उसकी तह तक पहुँच जाने की उनमें विलक्षण शक्ति थी।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- गीतिकाव्य के प्रमुख तत्वों के आधार पर विद्यापति के गीतों का मूल्यांकन कीजिए।
  3. प्रश्न- "विद्यापति भक्त कवि हैं या श्रृंगारी" इस सम्बन्ध में प्रस्तुत विविध विचारों का परीक्षण करते हुए अपने पक्ष में मत प्रस्तुत कीजिए।
  4. प्रश्न- विद्यापति भक्त थे या शृंगारिक कवि थे?
  5. प्रश्न- विद्यापति को कवि के रूप में कौन-कौन सी उपाधि प्राप्त थी?
  6. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि विद्यापति उच्चकोटि के भक्त कवि थे?
  7. प्रश्न- काव्य रूप की दृष्टि से विद्यापति की रचनाओं का मूल्यांकन कीजिए।
  8. प्रश्न- विद्यापति की काव्यभाषा का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  9. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (विद्यापति)
  10. प्रश्न- पृथ्वीराज रासो की प्रामाणिकता एवं अनुप्रामाणिकता पर तर्कसंगत विचार प्रस्तुत कीजिए।
  11. प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो' के काव्य सौन्दर्य का सोदाहरण परिचय दीजिए।
  12. प्रश्न- 'कयमास वध' नामक समय का परिचय एवं कथावस्तु स्पष्ट कीजिए।
  13. प्रश्न- कयमास वध का मुख्य प्रतिपाद्य क्या है? अथवा कयमास वध का उद्देश्य प्रस्तुत कीजिए।
  14. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  15. प्रश्न- पृथ्वीराज रासो का 'समय' अथवा सर्ग अनुसार विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  16. प्रश्न- 'पृथ्वीराज रासो की रस योजना का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- 'कयमास वध' के आधार पर पृथ्वीराज की मनोदशा का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- 'कयमास वध' में किन वर्णनों के द्वारा कवि का दैव विश्वास प्रकट होता है?
  19. प्रश्न- कैमास करनाटी प्रसंग का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  20. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (चन्दबरदायी)
  21. प्रश्न- जीवन वृत्तान्त के सन्दर्भ में कबीर का व्यक्तित्व स्पष्ट कीजिए।
  22. प्रश्न- कबीर एक संघर्षशील कवि हैं। स्पष्ट कीजिए?
  23. प्रश्न- "समाज का पाखण्डपूर्ण रूढ़ियों का विरोध करते हुए कबीर के मीमांसा दर्शन के कर्मकाण्ड की प्रासंगिकता पर प्रहार किया है। इस कथन पर अपनी विवेचनापूर्ण विचार प्रस्तुत कीजिए।
  24. प्रश्न- कबीर एक विद्रोही कवि हैं, क्यों? स्पष्ट कीजिए।
  25. प्रश्न- कबीर की दार्शनिक विचारधारा पर एक तथ्यात्मक आलेख प्रस्तुत कीजिए।
  26. प्रश्न- कबीर वाणी के डिक्टेटर हैं। इस कथन के आलोक में कबीर की काव्यभाषा का विवेचन कीजिए।
  27. प्रश्न- कबीर के काव्य में माया सम्बन्धी विचार का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  28. प्रश्न- "समाज की प्रत्येक बुराई का विरोध कबीर के काव्य में प्राप्त होता है।' विवेचना कीजिए।
  29. प्रश्न- "कबीर ने निर्गुण ब्रह्म की भक्ति पर बल दिया था।' स्पष्ट कीजिए।
  30. प्रश्न- कबीर की उलटबासियों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  31. प्रश्न- कबीर के धार्मिक विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (कबीर)
  33. प्रश्न- हिन्दी प्रेमाख्यान काव्य-परम्परा में सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी का स्थान निर्धारित कीजिए।
  34. प्रश्न- "वस्तु वर्णन की दृष्टि से मलिक मुहम्मद जायसी का पद्मावत एक श्रेष्ठ काव्य है।' उक्त कथन का विवेचन कीजिए।
  35. प्रश्न- महाकाव्य के लक्षणों के आधार पर सिद्ध कीजिए कि 'पद्मावत' एक महाकाव्य है।
  36. प्रश्न- "नागमती का विरह-वर्णन हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है।' इस कथन की तर्कसम्मत परीक्षा कीजिए।
  37. प्रश्न- 'पद्मावत' एक प्रबन्ध काव्य है।' सिद्ध कीजिए।
  38. प्रश्न- पद्मावत में वर्णित संयोग श्रृंगार का परिचय दीजिए।
  39. प्रश्न- "जायसी ने अपने काव्य में प्रेम और विरह का व्यापक रूप में आध्यात्मिक वर्णन किया है।' स्पष्ट कीजिए।
  40. प्रश्न- 'पद्मावत' में भारतीय और पारसीक प्रेम-पद्धतियों का सुन्दर समन्वय हुआ है।' टिप्पणी लिखिए।
  41. प्रश्न- पद्मावत की रचना का महत् उद्देश्य क्या है?
  42. प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद को समझाइए।
  43. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (जायसी)
  44. प्रश्न- 'सूरदास को शृंगार रस का सम्राट कहा जाता है।" कथन का विश्लेषण कीजिए।
  45. प्रश्न- सूरदास जी का जीवन परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं का उल्लेख कीजिए?
  46. प्रश्न- 'भ्रमरगीत' में ज्ञान और योग का खंडन और भक्ति मार्ग का मंडन किया गया है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  47. प्रश्न- "श्रृंगार रस का ऐसा उपालभ्य काव्य दूसरा नहीं है।' इस कथन के परिप्रेक्ष्य में सूरदास के भ्रमरगीत का परीक्षण कीजिए।
  48. प्रश्न- "सूर में जितनी सहृदयता और भावुकता है, उतनी ही चतुरता और वाग्विदग्धता भी है।' भ्रमरगीत के आधार पर इस कथन को प्रमाणित कीजिए।
  49. प्रश्न- सूर की मधुरा भक्ति पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  50. प्रश्न- सूर के संयोग वर्णन का मूल्यांकन कीजिए।
  51. प्रश्न- सूरदास ने अपने काव्य में गोपियों का विरह वर्णन किस प्रकार किया है?
  52. प्रश्न- सूरदास द्वारा प्रयुक्त भाषा का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- सूर की गोपियाँ श्रीकृष्ण को 'हारिल की लकड़ी' के समान क्यों बताती है?
  54. प्रश्न- गोपियों ने कृष्ण की तुलना बहेलिये से क्यों की है?
  55. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (सूरदास)
  56. प्रश्न- 'कविता कर के तुलसी ने लसे, कविता लसीपा तुलसी की कला। इस कथन को ध्यान में रखते हुए, तुलसीदास की काव्य कला का विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- तुलसी के लोक नायकत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- मानस में तुलसी द्वारा चित्रित मानव मूल्यों का परीक्षण कीजिए।
  59. प्रश्न- अयोध्याकाण्ड' के आधार पर भरत के शील-सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
  60. प्रश्न- 'रामचरितमानस' एक धार्मिक ग्रन्थ है, क्यों? तर्क सम्मत उत्तर दीजिए।
  61. प्रश्न- रामचरितमानस इतना क्यों प्रसिद्ध है? कारणों सहित संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
  62. प्रश्न- मानस की चित्रकूट सभा को आध्यात्मिक घटना क्यों कहा गया है? समझाइए।
  63. प्रश्न- तुलसी ने रामायण का नाम 'रामचरितमानस' क्यों रखा?
  64. प्रश्न- 'तुलसी की भक्ति भावना में निर्गुण और सगुण का सामंजस्य निदर्शित हुआ है। इस उक्ति की समीक्षा कीजिए।
  65. प्रश्न- 'मंगल करनि कलिमल हरनि, तुलसी कथा रघुनाथ की' उक्ति को स्पष्ट कीजिए।
  66. प्रश्न- तुलसी की लोकप्रियता के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- तुलसीदास के गीतिकाव्य की कतिपय विशेषताओं का उल्लेख संक्षेप में कीजिए।
  68. प्रश्न- तुलसीदास की प्रमाणिक रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
  69. प्रश्न- तुलसी की काव्य भाषा पर संक्षेप में विचार व्यक्त कीजिए।
  70. प्रश्न- 'रामचरितमानस में अयोध्याकाण्ड का महत्व स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- तुलसी की भक्ति का स्वरूप क्या था? अपना मत लिखिए।
  72. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (तुलसीदास)
  73. प्रश्न- बिहारी की भक्ति भावना की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- बिहारी के जीवन व साहित्य का परिचय दीजिए।
  75. प्रश्न- "बिहारी ने गागर में सागर भर दिया है।' इस कथन की सत्यता सिद्ध कीजिए।
  76. प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर विचार कीजिए।
  77. प्रश्न- बिहारी बहुज्ञ थे। स्पष्ट कीजिए।
  78. प्रश्न- बिहारी के दोहों को नाविक का तीर कहा गया है, क्यों?
  79. प्रश्न- बिहारी के दोहों में मार्मिक प्रसंगों का चयन एवं दृश्यांकन की स्पष्टता स्पष्ट कीजिए।
  80. प्रश्न- बिहारी के विषय-वैविध्य को स्पष्ट कीजिए।
  81. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (बिहारी)
  82. प्रश्न- कविवर घनानन्द के जीवन परिचय का उल्लेख करते हुए उनके कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- घनानन्द की प्रेम व्यंजना पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  84. प्रश्न- घनानन्द के काव्य वैशिष्ट्य पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- घनानन्द का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  86. प्रश्न- घनानन्द की काव्य रचनाओं पर प्रकाश डालते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
  87. प्रश्न- घनानन्द की भाषा शैली के विषय में आप क्या जानते हैं?
  88. प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
  89. प्रश्न- घनानन्द के अनुसार प्रेम में जड़ और चेतन का ज्ञान किस प्रकार नहीं रहता है?
  90. प्रश्न- निम्नलिखित में से किन्हीं तीन पद्याशों की शब्दार्थ एवं सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (घनानन्द)

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